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एक लफ्ज

की चडे जंग चाहे लोहे पर या चडे परत पानी पर , हम तो ठहरे किसान भईया अपना हक मांग के रहेंगे...

एक लफ्ज

 में भी किसान हु ,तपता भी लू लहु में हु , उगता भी हु खिलाता भी हु दरिया हु दिल का पिघलता भी हु  क्योकि में एक किसान हु...

एक लफ्ज

नसा होना चाहिये आँखों में अदब का,      जमाने में अपनी अलग पहचान बनाने का , नसा होना चाहिये मर्दो का आँखों में अदब का, मर्दो को इस जमाने का सारा जहाँ कहते हैं...

एक लफ्ज

 की बदलती बातो में एक अलग ही नशा है, ना सुने तब तक ना जमीन है ना आसमा है चंद बातो का अपना ही एक अलग मजा है , फिर वही  मुकम्मल अपनी एक अलग सी सजा है...